Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 310
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CATEGORICALECHANICALEGAOG । अर्थ-गुणरूप वनके विनाश करनेवाले जातिमदादि आठ मदरूप हाथियोंके वश करनेमें अंकुशसदृश जे गुरू |ज्ञान दान भव्योंको देवे है ऐसे उपाध्यायोंको मैं ध्याऊं ॥ १२४९॥ दिणमासजीवयंताई, सेसदाणाई मुणिउं जे नाणं । मुत्तित्तं दिति सया, ते ऽहं झाएमि उझाए १२५० है अर्थ-और दान दिन मास जीविततक जानके जे गुरू मुक्ति पर्यंत फल जिसका ऐसा ज्ञानदान देवे है ऐसे उन उपाध्यायोंको मैं ध्याऊं ॥ १२५०॥ अन्नाणंधे लोयाण, लोयेणे जे पसत्थसत्थमुहा । उग्घाडयंति सम्मं, ते ऽहं झाएमि उझाए ॥१२५१॥ ___ अर्थ-जे गुरु अज्ञानसे आंधे लोगोंके नेत्र शास्त्ररूप प्रशस्त शस्त्रसे उघाड़ते हैं उन उपाध्यायोंको मैं ध्याऊं १२५१ वावन्नवन्नचंदणरसेण, जे लोयपावतावाइं। उवसामयंति सहसा, ते ऽहं झाएमि उझाए ॥ १२५२ ॥ | अर्थ-बावनाचंदन का जैसा रस उसके जैसी शीतलवाणी करके जे गुरू अकस्मात् लोकोंका पापरूप तापको उप|शमावे है उन उपाध्यायोंको मैं ध्याऊं ॥ १२५२ ॥ जे रायकुमरतुल्ला, गणतत्तिपरा य सूरिपयजुग्गा । वायंती सीसवग्गं ते ऽहं झाएमि उझाए ॥१२५३॥ | अर्थ-जे राज कुमार तुल्य गच्छ की तृप्ति और समाधान करनेमें तत्पर तथा आचार्य पदके योग्य शिष्यवर्गको वाचना देवे है उन उपाध्यायोंको में ध्याऊं ॥ १२५३ ॥ SACCASI-GANGACACA For Private and Personal Use Only

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