Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 306
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जह नगरगुणे मिच्छो, जाणंतोवि हु कहेउमसमत्थो।तह जेसिं गुणे नाणी, ते सिद्धा दिंतु मे सिद्धिं १२३४ । अर्थ-जैसे म्लेच्छ नगरके गुण प्रासादमें निवास मधुररसभोजनादि जानता हुआभी और म्लेच्छोंके आगे कहने को नहीं समर्थ होवे वैसा भवस्थकेवली सिद्धोंका गुण जानते हुए भी कहनेको नहीं समर्थ होवे ऐसे सिद्ध मेरेको सिद्धि देओ ॥ १२३४॥ जे अ अणंतमणुत्तर, मणोवमं सासयं सयाणंदं। सिद्धिसुहं संपत्ता, ते सिद्धा दिंतु मे सिद्धिं ॥१२३५॥ | अर्थ-जे सिद्धिसुखप्राप्त हुआ वह सिद्ध मेरेको सिद्धि देओ कैसा है सिद्धिसुख नहीं विद्यमान अंत जिसका ऐसा ४ अनंत और नहीं विद्यमान उत्कृष्ट जिससे और अनुपम शाश्वता सदा आनन्द है जिन्होंके ऐसे ॥ १२३५ ॥ हैजे पंचविहायारं, आयरमाणा सया पयासंति । लोयाणणुग्गहत्थं, ते आयरिए नमसामि ॥ १२३६ ॥ हैअर्थ-जिके ज्ञानादि पांच प्रकारका आचार आचरण करता लोकोंके अनुग्रह के लिए निरंतर प्रगट करे हैं उन आचार्योंको मैं नमस्कार करूं हूं ॥ १२३६ ॥ देसकुलजाइरूवाइएहिं, बहुगुणगणेहिं संजत्ता। जे हंति जुगे पवरा, ते आयरिए नमसामि ॥१२३७॥ । अर्थ-जे देश कुल जाति रूपादिक बहुत गुणोंके समूह करके संयुक्त सहित भए युगमें प्रधान मुख्य होवे हैं उन आचार्योंको मैं नमस्कार करूं हूं ॥ १२३७ ॥ For Private and Personal Use Only

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