Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 305
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् भाषाटीकासहितम् ॥१५२॥ अर्थ-पूर्व प्रयोगसे धनुषसे फेंका बाणके जैसा निसंगताकर कर्ममलके जानेसे तूंवेके सदृश तथा बन्धन छेदसे कर्मबन्धन का छेद होनेसे एरंडफलके जैसा तथा स्वभावसे धूमसदृश जिन्होंकी ऊर्ध्वगति प्रवर्ते है वह सिद्ध मेरेको सिद्धि देओ॥ १२३०॥ ईसीपब्भाराए, उवरिं खलु जोयणमि लोगंते । जेसिं ठिई पसिद्धा ते सिद्धा दिंतु मे सिद्धिं ॥१२३१॥ ___ अर्थ-ईषत् प्रागभारा नाम सिद्धशिलाके ऊपर एक योजन लोकान्त है वहां स्थितिजिन्होंकी ऐसे सिद्ध मेरेको सिद्धि देओ॥१२३१ ॥ जे य अणंता अपुणब्भवाय, असरीरया अणाबाहा।दसणनाणुवउत्ता, ते सिद्धा दिंतु मे सिद्धिं ॥१२३२॥ | अर्थ-और अनन्ता अपुनर्भव जिन्होंका और शरीर रहित पीडा रहित और ज्ञान दर्शन का उपयोग युक्त जिन्होंके पहले समयमें ज्ञानका उपयोग होवे है और दूसरे समयमें दर्शन का उपयोग होवे है ऐसे सिद्ध मेरेको सिद्धि देओ ३२ जेऽणंतगुणा विगुणा, इगतीसगुणा य अहवअट्टगुणा। सिद्धाणंतचउक्का, ते सिद्धा दिंतु मे सिद्धिं १२३३ ___ अर्थ-जे सिद्ध अनन्तज्ञानादि गुण जिन्होंमें तथा वर्णादि जानेसे इकतीस ३१ गुण सहित और आठकर्मके क्षय होनेसे आठ गुण भया है जिन्होमें तथा निष्पन्नहुआ है अनन्तज्ञानादि चतुष्क जिन्होंके ऐसे सिद्ध मेरेको सिद्धि देओ ॥ १२३३ ॥ SIGISUGRASASKAN तथा वर्णादि जाका , ते सिद्धा निसा देओ ३२/६ For Private and Personal Use Only

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