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भाषाटीकासहितम्.
श्रीपाल-
चरितम् ॥१५३॥
जे निच्चमप्पमत्ता, विगहविरत्ता कसायपरिचत्ता। धम्मोवएससत्ता, ते आयरिए नमसामि ॥१२३८॥
अर्थ-जे गुरु निरंतर प्रमाद रहित राजकथादिक विकथाओंसे विरक्त क्रोधादि कषायों का त्याग किया जिन्होंने और धर्मोपदेश देनेमें समर्थ ऐसे आचार्योंको मैं नमस्कार करूं हूं ॥ १२३८ ॥ जे सारणवारणचोयणाहिं, पडिचोयणाहिं निच्चंपि। सारंति नियं गच्छं, ते आवरिए नमसामि ॥१२३९॥ ___ अर्थ-जे आचार्य सारणा वारणा चोयना पडिचोयना करके निरंतर अपने गच्छ की सम्भालकरे भूले हुए को याद द्र कराना सो स्मारना १ अशुद्ध पढ़ते हुए को मना करना सो वारणा २ अध्ययनके लिए प्रेरणा करना सो चोयना ३ | कठोर वचनोंसे प्रेरणा करना सो पडिचोयना इन ४ प्रकारसे अपने गच्छ का रक्षण करे हैं उन आचार्योंको मैं नमस्कार करूं हूं ॥ १२३९॥ जे मुणियसुत्तसारा, परोवयारिक्वतप्परा दिति । तत्तोवएसदाणं, ते आयरिए नमसामि ॥ १२४०॥ ___ अर्थ-जाना है सूत्रोंका सार जिन्होंने इसी कारणसे परोपकार करनेमें तत्पर भए जे गुरु तत्त्वोपदेश रूप दान देते हैं उन आचार्योंको मैं नमस्कार करूं हूं ॥ १२४० ॥ अत्थमिए जिणसूरे, केवलिचंदेवि जे पईवुव, । पयडंति इह पयत्थे, ते आयरिए नमसामि ॥१२४१॥
ROSHAHAHISISHAAISAIRAALA
॥१५३॥
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