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श्रीपा.च.२३
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अह अजियसेणनामा, रायरिसी सो विसुद्ध चारित्तो । उप्पन्नावहिनाणो, समागओ तत्थ नयरीए १०७१ अर्थ - अथ अजितसेननामराजर्षि चंपानगरीके उद्यानमें आके समवसरे कैसे हैं अजितसेनराजर्षि निर्मल चारित्र जिन्होंका इसी कारणसे उत्पन्न भया है अवधि ज्ञान जिन्होंको ऐसे ॥ १०७१ ॥ तस्सागमणं सोऊण, नरवरो पुलइओ पमोएणं । माइपियाहिं समेओ, संपत्तो वंदनिमित्तं ॥ १०७२॥ अर्थ — उस राजर्षिका आगमन सुनके श्रीपाल राजा हर्षसे रोमोद्गमयुक्त माता और रानियोंसहित मुनिको बांदनेको गया ॥ १०७२ ॥ तिपयाहिणित्तु सम्मं तं मुणिनाहं नमित्तु नरनाहो । पुरओ य संनिविट्ठो, सपरिवारो य विणयपरो १०७३
अर्थ - राजा सिरिपाल अजितसेन राजर्षिको तीन प्रदक्षिणा देके अच्छी तरहसे नमस्कार करके आगे बैठा कैसा सिरिपाल राजा परिवार सहित और बिनयमें तत्पर ॥ १०७३ ॥
| सोवि सिरिअजियसेणो, मुणिराओ रायरोसपरिमुक्को। करुणिक्कपरो परमं, धम्मसरूवं कहइ एवं १०७४ अर्थ- वह श्री अजितसेन मुनिराज रागद्वेषसे सर्वप्रकारसे रहित और करुणाही प्रधान जिन्होंके ऐसे वक्ष्यमाण प्रकार करके प्रधान धर्मका स्वरूप कहे ॥ १०७४ ॥
भो भो भवा भवोहंमि, दुल्हो माणुसो भवो । चुलगाईहिं नाहिं, आगमंभि वियाहिओ ॥ १०७५॥
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