Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 276
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RECERESEARSANSAR अर्थ-पर जीवोंको मारके उन्होंके मांस करके अपने प्राणोंको बलवान करते हैं वह दुष्ट थोड़े दिनोंके लिए अपने आत्माका नाश करते हैं ॥१११३ ॥ इच्चाइ जिणिंदागमउवएससएहिं बोहियंतीए। तीए न सक्किओसो, निवारिओ पाववसणाओ॥१११४॥ | अर्थ इत्यादि जिनागम सम्बन्धी सैकड़ों उपदेश देनेकर समझाया तौभी राजा पाप व्यसनसे नहीं निवृत्त भया॥१११४॥ अन्नदिणे सो सत्तहिं, सरहिं उल्लंठदुट्ठवंठेहिं । मिययासत्तो पत्तो, कत्थवि एगंमि वणगहणौ ॥१११५॥ ___ अर्थ-अन्य दिनमें वह श्रीकान्त राजा ७०० उलंठ वंठ पुरुषोंके साथमें मृगयामें आसक्त भया कोई गहन बनमें प्राप्त भया ॥१११५॥ दट्टण तत्थ एगं, धम्मझयसंजुयं मुणिवरिंदं । राया भणेइ एसो, चमरकरो कुट्टिओ कोवि ॥१११६॥ अर्थ-उस वनमें एक रजोहरन सहित मुनिवरिंदको देखके राजा बोले यह मक्खियों उड़ाने वास्ते चामर हाथमें | |जिसके ऐसा कोई कोढ़ी दिखता है ॥ १११६ ॥ ६ तं चेव भणंतेहिं, तेहिं वंठेहिं दुचित्तेहिं । उवसग्गिओ मुणिंदो, खमापरो लिट्ठलट्रीहि ॥ १११७॥ है अर्थ-ऐसा राजाके कहे हुए बचन बोलते हुए दुष्ट चित्तवाले वंठ पुरुषोंने मुनीन्द्रको पाषाण लकड़ियोसे उपसर्ग किया कैसा है मुनिवरीन्द्र क्षमा है प्रधान जिसके ऐसा ॥ १११७ ॥ CRICCAREERGARH For Private and Personal Use Only

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