Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 280
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ-कितने दिनके बाद औरभी गोखड़ेमें बैठे हुए राजाने कोई मुनिको देखा कैसा मुनि पसीनेसे आला भया है शरीरमें मैल जिसके उसीसे मैला है शरीर जिसका ऐसा और गोचरी फिरता हुआ॥११३०॥ तत्तो सहसा वीसारिऊण, तं सिरमईइ सिक्खंपि । सोराया दुट्ठमणो, नियवंठे एवमाइसइ ॥ ११३१॥ | अर्थ-मुनि देख्यों के अनन्तर दुष्टमन जिसका ऐसा राजा अकस्मात श्रीमतीकी दी भई सिखावनको भूलके | अपने वंठ पुरुषोंको ऐसी आज्ञा देवे ॥ ११३१॥ रे रे एयं डुंब, नयरं विद्यालयंतमम्हाणं । कंठे चित्तूण दुयं, निस्सारहनयरमज्झाओ ॥ ११३२॥ | अर्थ-अरे २ सेवको हमारा नगर विटालता हुआ अर्थात् अशुद्ध करता हुआ इस डोमको गल हत्था देके शीघ्र नगरसे बाहिर निकालो ॥ ११३२॥ तेहिं नरेहिं तहच्चिय, कड्डिजतो पुराउ सो साहू । निययगवक्खठियाए, दिट्ठो तीए सिरिमईए ॥११३३॥ | अर्थ-इस प्रकारसे राजाने कह्यों के बाद उन वंठ पुरुषोंने नगरसे निकालता हुआ उन साधुको अपने गवाक्षमें बैठी भई श्रीमतीने देखा ॥११३३ ॥ तो कुवियाए तीए, राया निभच्छिओकडुगिराए।तो सो विलजिओभणइ, देवि मे खमसु अवराहं ३४] KARNAKARANG For Private and Personal Use Only

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