Book Title: Shripal Charitram
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 281
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालचरितम् सहितम्. ॥१४०॥ FI अर्थ-तदनंतर क्रोधातुर भई रानीने कटुक वाणीसे राजाकी निर्भत्सना करी तव राजा लजित होके बोला हे देवी भाषाटीका मेरा अपराध क्षमा करो और ऐसा नहीं करूंगा ॥११३४ ॥ हासोमुणिनाहोरन्ना, तत्तो आणाविओनियावासंनिमिओय प्रइओखामिओय, तं निययमवराहं ११३५ हा अर्थ-तदनंतर राजाने उस मुनिनाथको अपने घर बुलाया और नमस्कार किया वस्त्रादिकसे पूजा और अपना अपराध क्षमा कराया ॥ ११३५ ॥ हापुट्ठो य सिरिमईए, भयवं अन्नाणभावओ रन्ना। साहणं उवसग्गं, काऊण कयं महापावं ॥ ११३६ ॥ __अर्थ-श्रीमतीने पूछा हे भगवन् राजाने अज्ञान भावसे साधुओंको बहुत उपसर्ग करके महापाप उपार्जन किया है तप्पावघायणथं, किं पि उवायं कहेह पसिऊणं । जेण कएण एसो, पावाओ छदृइ नरेसो ॥ ११३७॥ १ अर्थ-उस पापका विनाश करने के लिए प्रसन्न होके कोई उपाय कहो जिस उपाय करनेसे यह राजा पापसे छूटे ॥ ही तो भणइ मुणिवरिंदो, भद्दे पावं कयं अणेण घणं । जंगुणिणो उवघाए, सवगुणाणंपि उवघाओ॥११३८॥18 FI अर्थ-तब मुनिवरीन्द्र कहे हे भद्रे इस राजाने बहुत पाप किया है जिस कारणसे गुणवान पुरुषका विनाश करने-16 से सब गुणोंका उपघात होवे है ॥ ११३८ ।। ॥१४०॥ तहवि कयदुक्क्याणवि, जियाण जइ होइ भावउल्लासो।ता होइ दुक्कयाणं, नासो सवाणविखणेणं ११३९/81 For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334