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REGISTRAGRAAN
इच्चाइ नमोक्कारे, भणिऊण नरेसरो गहीरसरं । सक्कत्थयं भणित्ता, नवपयथवणं कुणइ एवं ॥१२०४॥
अर्थ-इत्यादि नमस्कार कहके राजा श्रीपाल गंभीरस्वरसे शक्रस्तव कहके वक्ष्यमाण प्रकारसे नव ९ पदोंकी स्तुति करे ॥ १२०४॥ उप्पन्नसन्नाणमहोमयाणं, सपाडिहरासणसंठियाणं । सद्देसणाणंदियसज्जणाणं, नमो नमो होउ सया जिणाणं ॥ १२०५॥ | अर्थ-उत्पन्न भया है सद्ज्ञान केवलज्ञान वोही तेजस्वरूप जिन्होका और प्रातिहार्य छत्र चामरादि करके सहित दावर्ते ऐसा जो सिंहासन उसपर बैठे हुए और शोभन धर्मोपदेशसे आनन्दउत्पन्न किया है सत्पुरुषोंको जिन्होंने ऐसे
जिनेन्द्र अरहन्तोंको निरंतर नमस्कार होवो ॥ १२०५॥ सिद्धाणमाणंदरमालयाणं, नमो नमोऽणंतचउक्कयाणं । सूरीण दूरीकयकुग्गहाणं, नमो नमो सूरसमप्पभाणं ॥ १२०६ ॥ । अर्थ-परमानन्द लक्ष्मीका निवास और अनन्तचतुष्क ज्ञान १ दर्शन २ सम्यक्त्व ३ अकर्णवीर्य ४ है जिन्होंके ऐसे सिद्धोंको नमस्कार होवो तथा दूर किया है कुत्सित अभिनिवेश जिन्होंने ऐसे और सूर्य के समान प्रभाज्योति जिन्होंकी ऐसे आचार्योंको नमस्कार होवे ॥ १२०६॥
SESAAR:984AEREA
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