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है अर्थ-तथा लोहका प्रवाह उससे उत्पन्न भया जो कर्दम उसमें चलते हुएके पगोंसे मर्दन होवे मृतकोंके शरीर
उन्होंका जो कड़ २ शब्द उसकरके भयंकर ऐसी संग्रामभूमि भई ॥ १०३८ ॥ युग्मं सिरिपालबलभडेहि, भग्गं दढूण नियबलं सयलं, उट्ठइ अजियसेणो, नियनामाओ व लजंतो॥
अर्थ-श्रीपाल राजाको जो बल उसमें जो सुभट उन्हों करके भागाहुआ सम्पूर्ण अपने सैन्यको देखके अजितसेन राजा अपने नामसे लज्जित हुआ होवे ऐसा उद्यतवान होवे किसीने नहीं जीती है सेना जिसकी ऐसी व्युत्पत्ती होनेसे ॥१०३९॥
जा सो परबलसुहडे, कुवियकयंतुव संहरइ ताव । सत्तसयराणएहिं, समंतओ वेढिओ झत्ति ॥१०४०॥ है अर्थ-वह अजितसेन राजा क्रोधातुर हुआ यमराजके जैसा जितने शत्रुसेनके सुभटोंका संहार करे उतने ७००
संख्यावाले राणा लघुराजा विशेष श्रीपाल राजाके सेवकोंने शीघ्र चौतर्फसे बीटा अर्थात् घेरा दिया ॥ १०४०॥ द्रोपच्चारिओय तेहिं, नरवर अजवि चएसु अभिमाणं। सिरिपालरायपाए, पणमसुमा मरसु मुहियाए १०४१
__ अर्थ-और उन्होंने बतलाया नाम कहा हे महाराज अबीभी अहंकारको छोड़ो श्रीपाल राजाके चरणों में नमस्कार IPकरो व्यर्थ क्यों मरते हो अर्थात् व्यर्थ मत मरो ॥ १०४१॥ 18 तहवि हु जाव न थक्कइ, झुझंतो ताव तेहिं सुहडेहि। सो पाडिऊण बद्धो, जीवंतो चेव लीलाए ॥१०४२॥
SAMACAREERSON
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