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अर्थ - और माया स्वरूप जिसका ऐसी मायारूप बिपकी बेलको जिसमुनिने आर्जव सरलताही श्रेष्ठ सरलकीला शंकु उस करके मूलसे उखाड़दी उस महामुनिको नमस्कार होवो ॥ १०५४ ॥ जेणिच्छामुच्छावेलसंकुलो, लोहसागरो गरुओ । तरिओ मुत्तितरिए, तस्स महामुणिवइ नमो ते १०५५
अर्थ - जिस मुनिने बड़ा लोभसमुद्रको मुक्तिनाम निर्लोभतारूप जहाजसे तिरा अर्थात् पार उतरे उस महामुनिको नमस्कार होवो कैसा लोभ समुद्र इच्छा मूर्च्छा बेलासे संकुल व्याप्त इच्छा सामान्य प्रकारसे बांधा मूर्छा विशेष तृष्णा | इच्छा युक्त मूर्छाही बेला जल वृद्धि करके व्याकुल ॥ १०५५ ॥
| जेण कंदप्पसप्पो, विवेयसंवेय-जणिय जंतेण । गयदप्पुच्चिय विहिओ, तस्स महामुणिवइ नमो ते १०५६ अर्थ — जिस मुनिने विवेक संमवेगसे उत्पन्न किया जो यंत्र उस करके कंदर्परूप सर्पको गत दर्प किया अर्थात् गया | अभिमान जिसका ऐसा किया उस महामुनिको नमस्कार होवे ॥ १०५६ ॥
जेण नियमण-पडाओ, को सुंभ- पयं -गमंगसमरागो ।
तिविवि निद्धओ, तस्स महामुणिवइ नमो ते ॥ १०५७ ॥
अर्थ - जिस मुनिने अपने मनरूप वस्त्रसे कुसुम्भ १ पतंग २ मंग ३ सदृश कामणा १ स्नेहणा २ दृष्टि एग ३ यह तीन प्रकारका राग दूर किया उस महामुनिको नमस्कार होवो वहां कसूमल रंग सरीखा कामणा और पतंग रंग
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