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श्रीपालचरितम् ॥११४॥
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अर्थ-राजा कहे अहो लोको सर्पके डसे हुए। पुरुष मूच्छित होके मरे हुए सदृश दीखते हैं तथापि उन सर्पके डसे भाषाटीकाहुए पुरुषोंको जैसे तैसे दाह देना नहीं ॥ ९१३ ॥
सहितम् तो तेहिं दंसिया सा, चियासमीवंमि महियले मुक्का । कंठट्रियहारेणं, रन्ना करवारिणा सित्ता॥ ९१४॥ | अर्थ-तदनंतर उन पुरुषोंने चिताकेपासकी भूमिपर रक्खी भई कन्याको दिखाई तव कंठस्थित हारके प्रभावसे 5 राजा श्रीपालने हाथमें जल लेकर छांटा ॥ ९१४ ॥ तत्कालं सा वाला, सुत्तविबुद्धुत्व उठ्ठिया झत्ति । विम्हियमणाय जंपइ, ताय किमेसो जणसमूहो ९१५ १ ___ अर्थ-तत्काल वह कन्या सोती भई जगे बैसी तत्काल उठी और आश्चर्य युक्तमन जिसका ऐसी शीघ्रबोली हे 8 तापिताजी इन लोकोंका समूह क्यों इकट्ठा भया हैं ॥९१५ ॥
महसेणो साणंदो, पभणइ वच्छे तुमं कओ आसि । जइ एस महाराओ नागच्छिज्जा कयपसाओ ९१६/२ ___ अर्थ-तब महसेन राजा आनंद सहित कहे हे पुत्रि जो यह महाराज यहां नहीं आते तो तें कहां थी कैसे हैं यह
महाराज किया है अनुग्रह जिन्होंने ॥ ९१६ ॥ है एएणं चिय दिन्ना, तुहपाणा अज परमपुरिसेण । जेण चियाओ उत्तारिऊण, उट्ठावियासि तुम ९१७)
११४॥ . अर्थ-इसी परम पुरुषने आज तेरेको प्राण दिया जिसने चितासे उतारकर तेरेको उठाई ॥९१७ ॥
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