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SAMAKAMSAKALAM
का अर्थ-तदनंतर दरवजा उघाड़ा श्रीपालराजा माताके चरणोंमें नमस्कार करे और विनय करनेमें तत्पर प्रिया मदन हा सुंदरीके साथ परमप्रेमसे भाषणकरे ॥ ९४३ ॥ है आरोविऊण खंधे, जणणिं दइयं च लेवि हत्थेण । हारप्पभावउच्चिय, पत्तो नियगुट्टरावासं ॥९४४॥ | अर्थ तदनंतर श्रीपालराजा माताको कांधेपर बैठाके स्त्रीको हाथ में लेके हारके प्रभावसे अपने तंबूमें आए ॥९४४॥ तत्थय जणणिं पणमित्तु, नरवरो भद्दासणे सुहनिसन्नं। पभणेइ माय तुह,-पयपसायजणियं फलं एयं९४५
अर्थ-वहां तंबूमें राजा श्रीपाल भद्रासनपर बैठी हुई माताको नमस्कार करके कहे हे माताजी तुम्हारे चरणोंके प्रसादसे उत्पन्न भया यह फल है ॥ ९४५ ॥ पणमंति तओ ताओ, अटू ण्डहाओ ससासुयाइ पए। अवि मयणसुंदरीए, जिट्राए निययभइणीए॥ | अर्थ-तदनंतर आठ पुत्रकी याने श्रीपालराजाकी रानियों सासुके चरणोंमें नमस्कार करें तथा बड़ी बहिन मदन| सुंदरीके चरणों में नमस्कार करें ॥ ९४६ ॥ अभिणंदियाओ ताओ, ताहिं आणंदपूरियमणाहिं। सबोवि हु वुत्तंतो मयणमंजूसाइ कहिओ य॥९४७॥ __ अर्थ-उन सासु और मदनसुंदरीने आशीर्वाद देके आनंदसहित करी कैसी है श्रीपालकी माता कमलप्रभा और मदनसुंदरी आनंदसे पूरित है मन जिन्होंका ऐसी और मदनमंजूसा विद्याधर राजाकी पुत्रीने सर्ववृत्तान्त कहा ॥९४७॥ दू
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