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श्रीपाल- अर्थ-वह सुनके कुमरी शीघ्र कूबड़ेका रूप जिसका ऐसे कुमरको वरे और कुमर अपना विशेष करके लोकोंको भालाका चरितम् |8| कुरूप दिखावे ॥ ८३०॥
सहितम्. इत्थंतरंमि सवे, रायाणो अक्खिवंति तं खुजं । रे रे मुंचसु एयं, वरमालं अप्पणो कालं ॥८३१॥ * ॥१०४॥
| अर्थ-इस अवसरमें सब राजा उस कूबड़ेपर आक्षेप करे कैसे सो कहते हैं रेरे कुज इस वरमालाको छोड़ कैसी है.
वरमाला यह तेरी काल रूप है ॥ ८३१॥ ६ जइ किरि मुद्धा एसा, न मुणइ गुणागुणपि पुरिसाणं। तहवि हु एरिस कन्नारयणं, खुजस्स न सहामो ८३२८ ___ अर्थ-जो वह मुग्धा भद्रक स्वभाववाली पुरुषोंका गुण औगुण नहीं जाने तथापि ऐसा कन्या रत्न कूबड़ेको
नहीं दे सकते हैं ॥ ८३२॥ जाता झत्ति चयसु मालं, नो वा अम्हं करालकरवालो। एसो तुह गलनालं, लुणिही नूनं सवरमालं ॥८३३॥ है। अर्थ-इस कारणसे शीघ्र मालाको छोड़ जो नहीं छोड़ेगा तो हमारी तलवार वरमाला सहित तेरा मस्तक छेदेगी।
अर्थात् वरमाला सहित तेरा मस्तक लेलेवेगी ॥ ८३३ ॥ हसिऊण भणइ खुज्जो, जइ किरितुब्भेइमीइ नो वरिया। दोहग्गददेहा, कीसनरूसेहता विहिणो८३४ाटू
अर्थ-तव कूबड़ा हसके कहे जो इस कन्याने तुमको नहीं बरा कैसे हो तुम दुर्भाग्यसे दूषित है शरीर जिन्होंका
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॥१०४॥
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