________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kcbatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मने अपना बल प्रगट
श्रीपाल
भाषाटीका
सहितम्.
चरितम् ॥१०५॥
| अर्थ-वह कूबडेका पराक्रम देखके श्रीवत्रसेन राजा रंजित भया कहे हे वत्स जैसा तुमने अपना बल प्रगट किया है वैसा अपना रूप प्रगट करो ॥ ८३८॥
तक्वालं च कुमार, सहावरूवं पलोइऊण निवो । परिणाविय नियधूयं, साणंदो देइ आवासं ॥८३९॥ 8 अर्थ-तब राजा तत्काल मूल रूपयुक्त कुमरको देखके अपनी पुत्रीको परणाके आनंद सहित रहनेके वास्ते प्रधान
प्रासाद देवे ॥ ८३९॥
तत्थ ट्रिओ सिरिपालो, कुमरो तिलुक्कसुंदरी सहिओ। पावइ परमाणंद, जीवो जह भावणासहिओ ८४० है। अर्थ-वहां रहा हुआ त्रैलोक्यसुंदरी सहित श्रीपालकुमर परम आनंद पावे भावना सदूअध्यवसाय सहित जीव परमानंद पावे वैसा ॥ ८४०॥ अन्नदिणे कोइ चरो, रायसहाए समागओ भणइ। देवदलपट्टणंमी, अत्थि नरिंदो धरापालो ॥ ८४१॥ __ अर्थ-अन्यदिनमें कोई चर खबरदेनेवाला पुरुष राजसभामें आया कहे देवदल नाम पत्तनमें धरापाल नाम राजा है है ॥ ८४१॥
तस्सुत्तमरायाणं, पुत्तीओ राणियाउ चुलसीई । ताण मज्झमि पढमा, गुणमाला अस्थि सविवेया॥८४२॥
*
॥१०५॥
For Private and Personal Use Only