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MAHARMA
तओ निउणा पढेई, जित्तउं लिहिलं बिलाडि, पुत्तलओ भणेइ, अरि मन अप्पिडं खंचि धरि,चिंता जालि म पाडि, फल तित्तिउं परिपामीयइ, जित्तउं लिहिउं निलाडि ॥ ८६६ ॥ ___ अर्थ-तब निपुणा चौथी सखी कहे (जित्तउ लिहिओ लिलाडि) यह चौथा समस्या पद पूतला कहे अरे मन ते
आत्माको खींचके धार चिंता जालमें मतगिरा फलतो उतनाही मिलेगा जितना कर्मरूप लिलाटमें लिखा हुआहै ॥८६६॥ तओ दक्खा पढेइ, तसु तिहयण जण दासु, तओ पुत्तलओ भणेई, अत्थि भवंतरसंचिउं। पुन्न समग्गलजासु, तसु बल तसु मइ तसु सिरिय, तसु तिहुअणजण दासु ॥ ८६७ ॥ | अर्थ-तब दक्षा नामकी पांचमी सखी कहे (तसु तिहु अणजण दासु) यह पांचवां समस्या पद तव पूतला कहे जिस पुरपके भवान्तरमें संचित जादा पुण्य हैं उस पुण्यके बलसैं पराक्रम और बुद्धि लक्ष्मी और शोभा होवे है और तीन भुवनका लोक दास होवे है ॥ ८६७ ॥ दट्ठण तं समस्सा, पूरणमइविझिया कुमारीवि । आणंदपुलइअंगी, वरइ कुमारं तिजयसारं ॥ ८६८॥ __अर्थ-वह समस्या पूर्ण भई देखके कुमरी अत्यंत आश्चर्य पाई इसीकारणसे आणंद हर्षकेवससे रोमोद्गमयुक्त अंग जिसका ऐसी कुमरको वरे कैसा है कुमर तीन जगतमें सारभूत है ॥८६८॥
श्रीपा.च.१९
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