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अर्थ - निश्चय यह पुरुष जो कोई प्रकारसे मेरी मनोगत समस्या पूर्ण करे तब मैं पारपाया प्रतिज्ञाका जिसने ऐसी धन्य कृतपुण्य होऊं ॥ ८५९ ॥
पुच्छइ तओ कुमारो, कहह समस्सापयाई निययाइं | तो कुमरिसंन्निया, पंडियावि पढमं पयं पढइ ८६०
अर्थ - तदनंतर कुमर पूछे तुम अपना समस्या पद कहो तब कुमरीने संज्ञा किया ऐसी पंडितासखी एक समस्या पद पढ़े ॥ ८६० ॥
मणुवंच्छिय फलहोइ, एसा सहीमुहेणं, जं कहइ समस्सापयं तयं मएणावि, पूरेयवं केणवि, | पुत्तलयमुहेण हेलाण ॥ ८६१ ॥
अर्थ — कौनसा समस्या पदसो कहते हैं मणुवंच्छिय फलहोइ यह पहला समस्या पद है यह समस्यापद सखीके | मुहसे सुनके कुमर विचारे यह राजकन्या सखी के मुखसे समस्या पद कहवाती है वह मैं कोई पूतलेके मुखसे समस्या पद पूर्ण करावं ॥ ८६१ ॥
इय चिंतिऊण पासट्ठियस्स, थंभस्स, पुत्तलयसीसे, कुमरेण करो दिन्नो, ता पुत्तलओ भणइ एवं ॥ ८६२॥
अर्थ - ऐसा विचारके कुमरने पास के थंभे में रहा हुआ पूतला उसके मस्तकपर हाथ रक्खा तब पूतला ऐसा बोला ॥८६२॥
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