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181 अर्थ-तिस कारणसे सम्यदृष्टि पूर्ण करनेको समर्थ होवे ऐसे समस्या पद बनाके देओ जिन्होंको पूर्ण करनेसे !
शुभाशुभ धर्मका परिणाम जाना जाय ॥ ८५०॥ .
तो तीइ कुमारीए, अस्थि पइन्ना कया इमा जो उ। चित्तगयसमस्साओ पूरिस्सइ सो वरेयवो॥८५१॥ है अर्थ-तदनंतर उनकुमरीने यह प्रतिज्ञा करी है कि जो मनोगत समस्या पूर्ण करेगा वह पुरष हमारे वरना ॥८५१॥3 सोऊण तं पसिद्धिं, समागयाणेगपंडिया पुरिसा। पूरंति समस्साओ, परं न तीए मणगयाओ॥८५२॥
अर्थ-उस प्रसिद्धिको सुनके अनेक पंडितपुरष आए भए समस्या पूर्ण करे है परंतु उस कन्याकी मनोगत समस्या कोई पूर्ण करने को नहीं समर्थ भया है ॥ ८५२॥ ४एवं सा निवधूया, सुपंडियाईहिं पंचहिं सहीहिं। सहिया चित्तपरिवखं, कुणमाणा वइ जणाणं ॥८५३॥ + अर्थ-इस प्रकारसे वह राजपुत्री सुंदर विचक्षणा पंडितादि पांच सखियो सहित लोकोंके चित्तकी परीक्षा करती
भई रहे है ॥ ८५३॥ तं सोऊणं सबो, सहाजणो भणइ केरिसं चुजं । पूरिजंति समस्सा, किं केणवि परमणगयाओ ॥८५४॥ । अर्थ-वह वचन सुनके सब सभाके लोग कहें अहो कैसा आश्चर्य है दूसरेके मनोगत समस्या क्या कोई पूर्ण कर है सके है ॥ ८५४ ॥
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