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अर्थ — उस राजाके उत्तमराजाओं की पुत्रियो ८४ चौरासी रानी हैं उन्हों में पहिली गुणमाला नामकी विशेष विवेकवती रानी है ।। ८४२ ॥
तीए य पंचपुत्ता, हिरण्णगब्भो य नेहलो जोहो । विजियारीय सुकन्नो, ताणुवरिं पुत्तिया चेगा ॥ ८४३ ॥
अर्थ - उसरानीके पांच पुत्र हैं उन्होंका नाम कहते हैं हिरण्यगर्भ १ स्नेहल २ योध ३ विजितारी ४ सुकर्ण ५ इन पांच पुत्रोंके ऊपर एक पुत्री है ॥ ८४३ ॥
सा नामेणं सिंगार, -सुंदरि सिंगारिणी तिलुक्कत्स । रूवकलागुणपुन्ना, तारुन्नालंकियसरीरा ॥ ८४४ ॥
अर्थ — उसका नाम शृंगारसुंदरी हैं कैसी हैं तीनलोकमे शृंगारशोभाकरनेवाली हैं और रूप कला गुणों करके पूर्ण है। यौवन अवस्थासे अलंकृत है शरीर जिसका ऐसी ॥ ८४४ ॥
| तीए जिणधम्मरयाइ, पंडिया तह वियक्खणा पउणा । निउणा दक्खत्ति सहीण, पंचगं अस्थि जिणभत्तं ८४५
अर्थ - जिन धर्ममें रक्त उस कन्या के पांच सखी है उन्होंका नाम कहते है पंडिता १ विचक्षणा २ प्रगुणा ३ निपुणा ४ दक्षा ५ कैसा है सखी पंचक तीर्थंकरका भक्त है ॥ ८४५ ॥
ताणं पुरो कुमारी, भणेइ अह्माणजिणमयरयाणं । जइकोइ होइ जिणमय-, विऊ वरो तो वरं होई ॥८४६ ॥
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