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अर्थ - कुमर भी धवलसेठका चरित आचार विचारता हुआ क्षणमात्र सोच करके उसका मृतककार्य अग्निसंस्का रादि करके उसको जलांजलि दिलावे ।। ७५५ ॥
वरबुद्धिदाइणो जे, मित्ता धवलस्स आसि तिन्नेव । ते सव्वाइ सिरीए, कुमरेणहिगारिणो ठविया ॥७५६॥
अर्थ - प्रधानबुद्धिके देनेवाले धवलके तीनमित्रोंको कुमरने धवल सम्बन्धी सर्व लक्ष्मीका अधिकारीकिया ॥ ७५६ ॥ मयणातिगेण सहिओ, कुमरो तत्थ ट्ठिओ समाहीए । केवलसुहाइ भुंजइ, मुणिब्ब गुत्तितयसमेओ ५७
अर्थ-तीन मदनासहित कुमर उस नगरमें समाधिसे रहा हुआ केवल सुख भोगवे किसके जैसा तीनगुप्ति मन, वचन, कायगुप्तिसहित जैसे मुनि सर्व सुख भोगवे वैसा यहभी ।। ७५७ ॥ अन्नदिणे सो कुमरो, रयवाडीए गओ सपरिवारो । पिच्छइ एवं सत्थं, उत्तरियं नयरउज्जाणे ॥७५८ ॥
अर्थ — अन्य दिनमें परिवारसहित कुमर राजवाड़ी गया हुआ नगरके उद्यानमें एक सथवाड़ा उतरा हुआ देखे ७५८ जो तत्थ सत्थवाहो, सोवि हु कुमरं समागयं दहुं । घित्तूण भिहणाइ, पणमइ पाए कुमारस्स ७५९ अर्थ- जो वहां सार्थवाह है वह कुमरको आया भया देखके भेटना लेके कुमरको नमस्कार किया यानें भेट ना दिया ।। ७५९ ॥
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