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श्रीपाल - चरितम्
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अर्थ - कुमर उस हार को पाके चिंता रहित होके सोता बाद प्रभातमें उठता हुआही कुंडलपुर जानेकी इच्छा करे ॥७७६ ॥ हारपभावेणं कय, - वामणरूवो गओ पुरे तत्थ । पासइ वीणाहत्थे, रायकुमारे ससिंगारे ॥ ७७७ ॥ अर्थ — हारके प्रभावसे किया है वामनरूप जिसने ऐसा कुमर उस नगरमें गया हुआ वीणा है हाथमें जिन्होंके ऐसे शृंगारसहित राजकुमरोंको देखे ॥ ७७७ ॥
कुमरो वामणरूवो, राया कुमारे हिं सहगओ तत्थ । जत्थत्थि उवज्झाओ, वीणासत्थाई पाढंतो ७७८
अर्थ - कुमर वामनेका रूप किया हुआ और राजकुमारोंके साथ जहां वीणाशास्त्र पढ़ानेवाला उपाध्याय है वहां गया ।। ७७८ ।।
जह जह उवज्झायं पइ, वामणओ कहइ मंपि पाढेह । तह तह रायकुमारा, हसंति सबै हडहडत्ति ७७९ अर्थ- जैसे २ वामन उपाध्यायसे कहे मेरेकोभी पढ़ावो अर्थात् वीणा बजाना सिखावो वैसा २ सर्व राजकुमर हड २ शब्द करके हसें ॥ ७७९ ॥
दट्टु अपाढयंतं, उवज्झायं झत्ति तस्स वामणओ । अप्पेइ हत्थखग्गं, हेलाए अइ महग्घंपि ॥ ७८० ॥ अर्थ - तब वामन उपाध्यायको नहीं पढ़ाता हुआ देखके बहुत कीमतका अपने हाथका खड्न लीलासे शीघ्र उपाध्यायको देवे ॥ ७८० ॥
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भाषाटीकासहितम्.
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