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श्रीपाल - चरितम्
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कुमरेण पुच्छिओ सो, सत्थाहिव ! आगओ तुमं कत्तो । पुरओवि कत्थ गच्छसि किं कत्थवि दिट्ठमच्छरियं अर्थ - कुमरने सार्थवाहसे पूछा हे सार्थपते तैं कहांसे आया है आगे कहां जाता है कहांभी कोई आश्चर्य जो देखाहो तो कहो ॥ ७६० ॥
तो भइ सत्थवाहो, कंतीनयरीओ आगओ अहयं । गच्छामि कंबुदीवं, निसुणसु अच्छेरयं एयं ७६१ अर्थ — तव सार्थवाह कहे मैं कंती नगरीसे आया हूं कंबुद्वीप जाता हूं मार्गमें आश्चर्य देखा सो सुनो ॥ ७६१ ॥ इत्तो य जोयणसए, कुंडलनयरं समत्थि विक्खायं । तत्थत्थि गुरुपयावो, राया सिरिमगरकेउत्ति ७६२ अर्थ - इस नगरसे सो योजन दूर प्रसिद्ध कुंडलपुर नामका नगर है वहां महाप्रताप जिसका ऐसाश्री मकरकेतु नामका राजा है । ७६२ ॥
तस्स कप्पूरतिलया देवी कप्पूरविमलसीलगुणा, । तकुच्छिभवा सुंदर, पुरंदरक्खा दुवे पुत्ता ॥ ७६३ ॥ अर्थ — उस राजाके कर्पूरतिलका नामकी रानी है कैसी है कपूरके जैसा निर्मल सीलगुण जिसका उसकी कुक्षिमें उत्पत्ति जिन्होंकी ऐसें सुंदर पुरंदर नामके दो पुत्र है ॥ ७६३ ॥ ताण उवरिं च एगा, पुत्ती गुणसुंदरित्ति नामेणं । जा रूवेणं रंभा, वंभी य कला कलावेणं ॥ ७६४ ॥
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भाषाटीकासहितम्.
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