SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपाल - चरितम् ॥ ९६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमरेण पुच्छिओ सो, सत्थाहिव ! आगओ तुमं कत्तो । पुरओवि कत्थ गच्छसि किं कत्थवि दिट्ठमच्छरियं अर्थ - कुमरने सार्थवाहसे पूछा हे सार्थपते तैं कहांसे आया है आगे कहां जाता है कहांभी कोई आश्चर्य जो देखाहो तो कहो ॥ ७६० ॥ तो भइ सत्थवाहो, कंतीनयरीओ आगओ अहयं । गच्छामि कंबुदीवं, निसुणसु अच्छेरयं एयं ७६१ अर्थ — तव सार्थवाह कहे मैं कंती नगरीसे आया हूं कंबुद्वीप जाता हूं मार्गमें आश्चर्य देखा सो सुनो ॥ ७६१ ॥ इत्तो य जोयणसए, कुंडलनयरं समत्थि विक्खायं । तत्थत्थि गुरुपयावो, राया सिरिमगरकेउत्ति ७६२ अर्थ - इस नगरसे सो योजन दूर प्रसिद्ध कुंडलपुर नामका नगर है वहां महाप्रताप जिसका ऐसाश्री मकरकेतु नामका राजा है । ७६२ ॥ तस्स कप्पूरतिलया देवी कप्पूरविमलसीलगुणा, । तकुच्छिभवा सुंदर, पुरंदरक्खा दुवे पुत्ता ॥ ७६३ ॥ अर्थ — उस राजाके कर्पूरतिलका नामकी रानी है कैसी है कपूरके जैसा निर्मल सीलगुण जिसका उसकी कुक्षिमें उत्पत्ति जिन्होंकी ऐसें सुंदर पुरंदर नामके दो पुत्र है ॥ ७६३ ॥ ताण उवरिं च एगा, पुत्ती गुणसुंदरित्ति नामेणं । जा रूवेणं रंभा, वंभी य कला कलावेणं ॥ ७६४ ॥ For Private and Personal Use Only भाषाटीकासहितम्. ॥ ९६ ॥
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy