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श्रीपाल - चरितम्
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तो विज्झाहरधूया, कहेइ सर्व्वपि कुमरचरियं जा । ताव निवो साणंदो, भणइ इमो भइणिपुत्तो मे ७३५ अर्थ - तदनंतर विद्याधरराजाकी पुत्री मदनमंजूषाने सर्व कुमरका चरित कहा कुमर समुद्रमें पड़ा वहां तक उतने वसुपाल राजा आनंदसहित बोले यहकुमर मेरी बहिनका पुत्र भानजा है ॥ ७३५ ॥ गाढपरं संतुट्ठो, राया कुमरस्स देई बहुमाणं । डुंबं सकुडंबंपि हु, ताडावइ गरूयरोसेण ॥ ७३६ ॥
अर्थ —तदनंतर अत्यन्त संतुष्टमान भया राजा कुमरका बहुत सत्कार करे और बहुत क्रोधसे कुटुंबसहित डोमको अपने सेवकोंके पास पिटवावे ॥ ७३६ ॥
डुबो कहे सच्चं, सामिय कारावियं इमं सवं । एएण सत्थवाहेण, देव दाऊण मज्झ धणं ॥ ७३७ ॥
अर्थ - तब डोम सत्य कहे हे स्वामिन् हे देव हे महाराज इस सार्ववाणिएने मेरेको धन देके यह सर्व अकार्य कराया सर्व अनर्थका मूल यह सार्थवानिया है ॥ ७३७ ॥
तो राया धवलंपि हु, बंधावेऊण निविडबंधेहिं । अप्पेइ मारणत्थं, चंडाणं दंडपासीणं ॥ ७३८ ॥
अर्थ - तदनंतर राजा धवल सार्थवाहको मजबूत बंधनोंसे बंधवाके अत्यन्त दुष्ट कोटवाल पुरुषों को मारनेके वास्ते देवे ॥ ७३८ ॥
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भाषाटीकासहितम्.
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