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श्रीपालचरितम्
॥९२॥
SAUGACASSAULOCALCUR
अर्थ-अथवा हे राजन् आपने यह आख्यानक लौकिक कथन सत्य किया कि पहले पानीपीके पीछे घर पूछना अर्थात् भाषाटीकाकोई ब्राह्मण वगैरह मारवाड देशमें चला जाताथा बहुत तृषालगी बादमें किसीसे कहा भाई पानी पिलाओ उसने पानी|8| सहितम्, पिलाया बाद ख्याल हुआ और पूछा घर किसका है उसने कहा ढेड़का है इत्यादि ॥ ७२६ ॥ सिन्नं करेह सज्जं जं मम हत्था कुलं पयासंति । जीहाए जं कुलवन्नणं,-ति लज्जाकरं एयं ॥७२७॥ | अर्थ-जो मेरा कुल श्रवणकी इच्छा होवे तो यह करिए कि अपनी सेना तय्यार करो जिससे मेरा हाथ कुल कहेगा अपनी जिव्हासे कुल कहना यहतो लज्जाकारी है ॥ ७२७ ॥ अहवा पवहणमज्झ,-ठियाओ जा संति दुन्निनारीओ।आणाविऊण ताओ, पुच्छेह कुलंपिजह कजं ७२८ | अर्थ-अथवा जहाजमें दो स्त्रियों हैं उन स्त्रियोंको यहां बुलाके जो आपके कार्य होवे तो कूल पूछो ॥ ७२८॥
तो विम्हिओ यराया, आणाविय धवलसत्थवाहंपि । पुच्छइ कहेसु किं संति, पवहणे दुन्नि नारीओ ७२९ __अर्थ-तदनंतर राजा आश्चर्ययुक्त भया धवल सार्थवाहको बुलाके पूछे अहो सेठ कहो जहाजमें क्या दो स्त्रियों हैं ॥७२९॥
धवलोवि हु कालमुहो, जा जाओ ताव नरवरिंदेणं । नारीण आणणत्थं पहाणपुरिसा समाइट्ठा ७३० है। | अर्थ-यह राजाका बचन सुनके धवलसेठ जितने स्याममुख होगया उतने राजाने उन स्त्रियोंको बुलाने के वास्ते ॥ ९२॥ अपने प्रधान पुरुषोंको आज्ञा दिया ॥७३०॥
SECARIOS
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