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श्रीपालचरितम्
॥३९॥
६ कइवयदिणपजते, बालयपित्तिजओ अजियसेणो।परिगहभेयं काउं, मंतह निवमंति बहणत्थं ॥२९॥दू भाषाटीकादा अर्थ-कितने दिनोंके बाद बालक श्रीपाल राजाका पितृव्य काका अजितसेन राजा परिवारका भेद करके राजा है।
सहितम्और मंत्रवीको मारनेका विचार करे ॥ २९३ ॥ तं जाणिऊण मंति, कहिओ कमलप्पभाइ सबंपि। विन्नवइ देवि?जह तह, रक्खिजसु नंदणं निययं ९४ | अर्थ-मंत्री वह विचार जानके कमलप्रभा रानीको सब वृतान्त कहके विनती करी हे देवी हे महारानी यथा तथा जिस तिस प्रकार करके अपने पुत्रकी रक्षा करो ॥ २९४ ॥ जीवंतेण सुएणं, होही रज पुणोवि निष्भंतं । ता गच्छ इमं पित्तुं, कत्थवि अहयंपि नासिस्सं ॥२९५॥ | अर्थ-पुत्र जीता रहेगा तो औरभी निसंदेह राज्य होगा इसलिए इस बालकको लेके कहीं चलीजाओ मैंभी यहांसे भागके जाउंगा ॥ २९५॥ तत्तो कमला चित्तूण, नंदणं निग्गया निसिमुहंमि । मा होउ मंतभेओत्ति, सबहा चत्तपरिवारा ॥२९॥ | अर्थ-तदनंतर कमलप्रभा रानी पुत्रको लेके संध्या समयमें निकली कैसी रानी इस विचारको कोई जानो मत है ऐसा विचारके सर्वथा दास्यादि परिवारका त्याग किया जिसने ऐसी एकाकिनी निकली ॥२९६ ॥
॥ ३९॥ निवभजा सुकुमाला, वहियवो नंदणो निसा कसिणा। चंकमणंचरणेहि, ही ही विहिविलसियं विसमं ९७/
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