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चिंतेइ हिययमझे, ही ही विहिविलसिएण विसमेण, जं जं करोमि कजं, तं तं मे होइ विवरीयं ६९७।। 8| अर्थ-तब हृदयमें सेठ बिचारे ही ही इति खेदे विषम विधिके विलाससे जो जो कार्य मैं करूं हूं वह सब विपरीतही181
होता है ॥ ६९७ ॥ Pएसो सो सिरिपालो, जाओ जामाउओनरिंदस्स । गुरुओ ममावराहो, किं होही तं न याणामि ६९८]
अर्थ-यह श्रीपाल राजाका जमाई हुआ है मेरा अपराधतो बड़ा है अब क्या होगा सो नहीं जानू ॥ ६९८॥ | तहवि नियकजविसए, धीरेण समुज्झमो न मुत्तब्बो । जं सम्ममुजमंताण, पाणिणं संकए हु विही ६९९ ___ अर्थ-तथापि बुद्धिमानको अपने कार्यमें अच्छी तरहसे उद्यम करना अर्थात् उद्यम छोड़ना नहीं जिस कारणसे सम्यक् उद्यमवान् प्राणियोंसे निश्चय विधिः देवभी शंकता है ॥ ६९९ ॥ एवं सो चिंतंतो, जा पत्तो निययंमि उत्तारे । ता तत्थ गीयनिउणं, डुंबकुटुंबं च संपत्तं ॥ ७००॥ I अर्थ-बह धवल सेठ इस प्रकारसे विचारता हुआ जितने अपने उतारे पहुंचा उतने वहां गीत कलामें निपुण डुं| दामोंका कुटुंब आया ॥७००॥
सो ताण गायणाणं, जाव न चिंताउलो दियइ दाणं । ता डुवेणं पुट्ठो, रुट्ठो किं देव अम्हुवरि ॥७०१॥
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