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श्रीपाल- । अर्थ-वह धवल चिंतासे आकुल हुआ जितने उन गायनोंको दान नहीं देवे उतने डुंबने सेठसे कहा हेदेव हे महा- भाषाटीकाचरितम् शराज क्या हमारेपर नाराज भयाहो इससे दान नहीं देवो हो ॥७०१॥
| सहितम्. ॥८९॥3|एगते डुंबं पइ सो जंपइ, देमि तुजूझ भूरिधणं । जइ इवं मह कजं, करेसि केणवि उवाएणं ॥७०२॥
| अर्थ-यह डुंमका वचन सुनके सेठ एकान्तमें डुमसे कहे तेरेको बहुत धन देउं जो कोई उपाय करके एक मेरा है कार्य करे ॥ ७०२॥
डुंबोवि भणइ पढम, कहेह मह केरिसं तयं कजं । जेण मए जाणिज्जइ, एयं सज्झं असझं वा ७०३ 81 अर्थ-यह धवलका वचन सुनके डुंब बोला पहले मेरेको वह कैसा कार्य है सो कहो जिससे जानने में आवे वह टू
कार्य साध्य है अथवा असाध्य है ॥ ७०३ ॥
धवलो भणेइ जो,नरवरस्स जामाउओइमो अत्थि। जइ तं मारेसि तुमं, तो तुह मुहमग्गियं देमि ७०४ 2. अर्थ-तब धवल सेठ कहे जो यह राजाका जमाई है जो तैं राजाके जमाईको मार देवे अर्थात् प्राणरहित करे तो 18| मैं जो मांगेसो देउं ॥ ७०४॥ हाडंबो भणेइ तं मारणंमि, इक्कुत्थि एरिसोवाओ। जं अन्नायकुलं तं, पयडिस्सं एस डुबुत्ति ॥ ७०५ ॥
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