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श्रीपालचरितम्
॥८८॥
रायावि सत्थवाहस्स, तस्स दावेइ गुरुयबहमाणं । तंबोलं तेणं चिय, सिरिपालेणं विसेसेणं ॥६९२॥ | भाषाटीका | अर्थ-राजाभी उस सार्थवाहको श्रीपालके हाथसे विशेष सत्कार करनेके लिए ताम्बूल दिलावे ॥ ६९२ ॥
सहितम्. सिरिपालकुमारेणं, नाओ सिट्ठी स दिट्ठमित्तोवि । सिट्ठी पुण सिरिपालं, दट्टणं चिंतए एवं ॥६९३॥ PI अर्थ-श्रीपाल कुमरने धवल सेठको देखनेसेही पहिचान लिया और सेठ श्रीपालको देखके इस प्रकारसे ६ विचारे ॥ ६९३ ॥
धि द्धी किं सो एसो, सिरिपालो धवलसिट्टिणो कालो। किंवा तेण सरिच्छो अन्नोपुरिसो इमो कोऽवि ६९४ Pा अर्थ क्या विचारे सो कहते हैं धिक्कार होवो धिक्कार होवो वह यह श्रीपाल है कैसा है श्रीपाल धवलसेठके काल | सदृश है अथवा श्रीपालके तुल्य यह कोई दूसरा पुरुष है ॥ ६९४ ॥ ठाऊण खणं नरवर,-सहाइ जा उट्ठिओ धवलसिट्ठी। पडिहाराओ पुच्छइ, थइयाइत्तो इमो को उ६९५४ ___ अर्थ-ऐसा विचारके धवलसेठ क्षणमात्र राजाकी सभामें बैठके जितने उठा उतने बाहर आके द्वारपालसे पूछे यह |
ताम्बूल देनेका अधिकारी कौन पुरुष है ॥ ६९५ ॥ ६ तेणं कहिओ सबोवि तुस्स कुमरस्स चरियवुत्तंत्तो । तं सोऊणं सिट्ठी, जाओ वजाहउ दुही ॥६९६॥8
18॥८८॥ है। अर्थ-उस प्रतिहारने कुमरका सर्ववृतान्त कहा उस वृतान्तको सुनकर सेठ वज्राहतके जैसा दुःखी भया ॥ ६९६ ॥
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