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अर्थ - अथ नाटक पूर्ण होनेसे उस पुरुषको कुमरने पूछा हे भद्र तैं कौन है किस नगरमें तुम्हारा निवास है और कोई आश्चर्य देखा होय तो कहो ॥ ४८५ ॥
सो जंपइ विणयपरो, कुमरं पइ देव ? इत्थ दीवंमि । सेलोत्थि रयणसाणू, बलयागारेण गुरुसिहरो ४८६
अर्थ — इस प्रकारसे कुमरके पूछनेसे वह पुरुष विनयमें ततपर होके कुमरसे कहे हे देव हे महाराज इस द्वीपमें कड़े के जैसी गोल आकृति ऐसा रत्नसानु नामका बहुत हैं शिखर जिसके ऐसा पर्वत है ॥ ४८६ ॥ तम्मज्झ कयनिवेसा, अत्थि पुरी रयणसंचयानाम । तं पालइ विज्जाहर, राया सिरिकणयकेउत्ति ४८७
अर्थ - उस पर्वतके मध्यभागमे करी रचना जिसकी ऐसी रत्नसंचया नामकी नगरी है उस नगरीको श्रीकनककेतु नाम विद्याधर राजा पाले है अर्थात् रक्षाकरे है ॥ ४८७ ॥
| तस्सत्थि कणयमाला, नाम पिया तीइ कुच्छिसंभूया । कणयपह कणय सेहर, कणयज्झय कणयरुइपुत्ता ॥
अर्थ - उस राजा के कनकमाला नामकी रानी है उसकी कुक्षिसे उत्पन्न भए कनकप्रभ १ कनकशेखर २ कनक ध्वज ३ कनकरुचि ४ इन नामके चार पुत्र हैं ॥ ४८८ ॥
| तेसिं च उवरि एगा, पुत्ती नामेण मयणमंजूसा । सयलकलापारीणा, अइरइरूवा मुणियतत्ता ॥४८९ ॥
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