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श्रीपाल- चरितम्
॥८४॥
अर्थ-समुद्रके शीतल वायुसे पाई चेतना जिन्होंने ऐसीदोगें स्त्रियों दुःखके भरनामपूरसे भरा है हृदय जिन्होंका भाषाटीकाइसी कारणसे ऊंचेस्वरसे रोती भई कैसी रोती भई सो कहते हैं ॥ ६५७ ॥
सहितम्हा प्राणनाह गुणगणसणाह, हा तिजयसारउवयार।हा चंदवयण हा कमलनयण, हा रूवजियमयण६५८ | अर्थ-हा इति खेदे हे प्राणनाथ हे गुणगण सनाथ गुणोंका समूह करके सहित हा तीनजगतमें सार उपकार |जिसका ऐसा हे चन्द्रसम वदन हे कमल सदृश नेत्रवाला हा इति खेदे रूपसे जीता है कामको जिसने उसका सम्बो
धन हे रूपजित मदन ॥ ६५८॥ ६ हा हा हीणाण अणाहयाण, दीणाण सरणरहियाण।सामियतए विमुक्काण, सरणमम्हाण को होही ६५९/६ है अर्थ हाहा इति खेदे हे स्वामिन् आपने हमको छोड़ दी इसी कारणसे शरण रहित हमारे किसका सरणा होगा
कैसी हैं हम दीन हैं हीन हैं अनाथ हैं ॥ ६५९॥ तो धवलो सुयणो इव, जंपइ सुयणु करेह मा खेयं । एसोहं निच्चंपि हु, तुम्हं दुक्खं हरिस्सामि ६६०/3 | अर्थ-इसप्रकारसे उन्होंका रोना सुनके तदनंतर धवल सेठ स्वजनके जैसा उन्होंके पासमें आके इस प्रकारसे ल बोला हे सुतनु शोभन अंगवाली स्त्रियो तुम मनमें खेद मत करो मैं तुम्हारा दुःख दूर करूंगा मैं तुम्हारा आज्ञा है ॥ ८४ ॥
कारी हूं ॥ ६६०॥
SARAN
ACANCESS
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