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श्रीपालचरितम्
भाषाटीका सहितम्.
अर्थ-और उन चार पुत्रोंके ऊपर मदनमंजूसा नामकी एक पुत्री है कैसी है सम्पूर्ण कलाका पारपाया जिसने और रति कामदेवकी स्त्रीका रूप सौंदर्य उलंघा जिसने और जाना है तत्व जिसने ऐसी ॥ ४८९॥ तत्थ य पुरीइ एगो, जिणदेवो नाम सावगोतस्स । पुत्तोहं जिनदासो, कहेमि चुजं पुणो सुणसु ४९० __ अर्थ-उस नगरीमें एक जिनदेवनामका श्रावक है उसका जिनदास नामका मैं पुत्रहूं आश्चर्य अब मैं कहूं सो सुनो ॥४९ ॥ सिरिकणयकेउरन्नो, पियामहेणिस्थ कारियं अत्थि । गिरिसिहरसिरोरयणं, भवणं सिरिरिसहनाहस्स॥ ___ अर्थ-श्रीकनककेतू राजाका पितामह दादाने इस पर्वतके शिखरपर रत्न जैसा श्रीऋषभदेव स्वामीका मंदिर बनवाया है॥ ४९१॥
तं च केरिसं, संतमणोरहतुगं, उत्तमनरचरियनिम्मलविसालं ।
दायारसुजसधवलं, रविमंडलदलियतमपडलं ॥ ४९२ ॥ ___ अर्थ-सत्पुरुषोंका मनोरथ ऊंचा होवे है वैसा वह मंदिर ऊंचा है और उत्तमपुरुषोंके चरित्र जैसा वह मंदिर र निर्मल और विशाल है तथा दातारके जसके जैसा वह मंदिर धवला है सूर्यमंडलके जैसा अंधकार जिसने दूरकिया है|
ऐसा वह मंदिर है ॥ ४९२ ॥
ESALCHAURANGALAAMAS
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