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श्रीपालचरितम्
भाषाटीका सहितम्.
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CARE CASA GRASASAKTAI
होय वैसा दूसरेकी निर्भर्त्सना करे स्वान पक्षमें अव्यक्त शब्द करे सविष डसे और प्रछन्न सुंघते हुए फिरें दुर्जन पक्षमें दूसरेका विनाश होवे ऐसा छिद्र प्रकाशन करना और परछिद्र देखनेके लिए जाना ॥ ६२२ ॥ ता तं न होसि धवलो, कालोसि इमाइ किन्हलेसाए । ता तुम्ह दंसणेणवि, मालिन्नं होइअम्हाणं ६२३ | अर्थ-इस कारणसे तैं धवल नहीं होवे है किंतु इस कृष्ण लेश्यासे काला है तेरेको देखनेसे हम लोग मैले होते हैं ६२३ इय भणिय गया निय निय,ठाणेसु जावतिन्नि वरपुरिसा। तुरिओ कुडिलसहावो,पुणोवि तप्पासमासीणो
अर्थ-ऐसा कहके जितने तीन प्रधान पुरुष उठके अपने २ ठिकाने गए उतने कुटिल वक्र स्वभाव जिसका ऐसा लाचौथा पुरष औरभी धवल सेठके पासमें आके बैठा ॥ ६२४ ॥
सो जंपइ धवलं पइ, न कहिज्जइ एसिमरिसंमंतं । जं एए अरिभूया, तुह अहियं चेव चिंतंति ॥२५॥ I अर्थ-वह पुरुष धवल सेठ से कहे कि अहो सेठ ऐसा विचार इनतीनोंको नहीं कहा जावे जिसकारणसे वे तुम्हारे
शत्रु हैं तुम्हारा अहितही विचारते हैं ॥ ६२५ ॥ है इक्कोहं तुहमणबंच्छियत्थ,-संसाहणिक्कतल्लिच्छो।अच्छामि ता तुमं मा, नियचित्ते किंपि चिंतेसु ॥२६॥ ___ अर्थ-एक मैं तुम्हारा मनोवांछित अर्थ सम्पादन करनेकी इच्छा जिसकी ऐसा तुम्हारा अर्थ साधनमें तत्पर रहता हूं इसलिए तुम अपने मनमें कोई प्रकारकी चिंता मत करो ॥ २६ ॥
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