________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्रीपाल - चरितम्
॥ ८२ ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अर्थ - विनयसे नम्र इसी कारणसे हाथ जोड़के उन सुभटोंने वीनती करी सो कहते है हे देव इस कोंकण देशमें 6 भाषाटीकास्थाना नामका प्रधान नगर है उस नगरमें ॥ ६३९ ॥
सहितम्.
वसुपालो नाम निवो, तेणं अम्हे इमं समाइट्ठा। जलहितडे जं अचलंतच्छायतरुतले समासीणं ॥ ६४०॥
अर्थ- वसुपाल नामका राजा है उन्होंने हमको ऐसी आज्ञा दी है सो कहते हैं समुद्रके तीरपर अचलछाया जिसकी ऐसा वृक्षके नींचे रहा हुआ पुरुष रत्नको ॥ ६४० ॥
पिच्छेह पुरिसरयणं, अज्झदिणे चेव, पच्छिमे जामे । तं तुरियंचिय तुरया, रूढं काऊण आणेह ६४१
अर्थ- आजही दिनके पीछेके प्रहरमें तुमदेखो उस पुरुषरत्नको शीघ्रही घोड़ेपर चढ़ाके लावो ॥ ६४१ ॥ ता अम्हेहिं तुमंचिय, दिट्ठोसि जहुत्ततरुतलासीणो । सामिय पुन्नवसेणं, ता तुरियं तुरयमारुहह ॥ ६४२ ॥
अर्थ - यह राजाका आदेश है इसलिए हे स्वामिन् हमने यथोक्त वृक्षके नींचे रहे हुए आपको पुण्यके वशसे देखे हैं इससे शीघ्र कृपा करके घोड़ेपर सवार होओ ॥ ६४२ ॥
| कुमरोवि हयारूढो, तेहिं सुहडेहिं चेव परियरिओ । खणमित्तेणवि पत्तो, ठाणयपुर परिसरवणंमि ॥६४३ ॥ अर्थ - कुमर भी घोड़े पर सवार होके उन पुरुषोंके साथ परवरा हुआ क्षण मात्रसे अर्थात् थोड़ी वक्तसे थाना नगरके पासके बनमें पहुंचा ॥ ६४३ ॥
For Private and Personal Use Only
॥ ८२ ॥