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श्रीपालचरितम्
भाषार्टीकासहितम्
॥७९॥
OSSILISHIGERUS
HI अर्थ-सलिए तैने अपने मन में ऐसा पाप कैसे विचारा और जो विचारा तो तेंने अपनी जिव्हासे कैसे कहा तेरेको लज्जाभी नहीं आई ॥ ६१६ ॥
आसि तुम अम्हाणं, सामि य मित्तं च इत्तियं कालं। एरिसयं चिंतंतो, संपइ पुण वेरिओ तंसि॥१७॥ है अर्थ-इतने कालतक तैं हमारा स्वामी और मित्रथा इसवक्तमें ऐसा विचारता हुआ तैं हमारा वैरी है ॥ ६१७ ॥
पोयाण चालणं तं, तह महकालाउ मोयणं तं च, विज्जाहराउ मोयावणं च, किं तुज्झ वीसरियं ॥१८॥ 5 अर्थ-जहाजोंको देवताने स्तंभित किया था सो इस महा पुरुषने चलाया महाकाल राजाने तेरेको बांधा था सो
इस कुमरने छुड़ाया और विद्याधर राजाने मारनेकी आज्ञा दिया था सोभी इसी उत्तम पुरुषने बचाया इतना उपकार तें भूलगया ॥ ६१८॥ |एवंविहोवयाराण, कारिणो जे कुणंति दोहमणं । दुजणजणेसु तेसिं, नणं धुरि कीरए रेहा ॥ ६१९ ॥ ___ अर्थ-इस प्रकारके उपगारोंके करनेवाले पुरुषके ऊपर जो दुष्ट द्रोह युक्त मनकरे उन पुरुषोंकी दुष्ट पुरुषोंके आदिमें रेखा दी जाती है निश्चयसे ॥ ६१९॥ मलिणा कुडिलगईओ, परछिद्दरया य भीसणा डसणा, पयपाणवि लालंतयस्स मारंतिदोजीहा ६२० |
अर्थ-द्विजिव्हा सर्प और खल पुरुष किसको सुख देवे है अपि तु किसीको नहीं देवे अब दोनोंका सदृश विशे-|
ACARRANI
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