________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीपाल- अर्थ-अब कुमर विकस्वरमान है नेत्र और मुखकमल जिसका ऐसा जितने मंडपके अंदर जावे उतने किया है। ट्रभाषाटीकाचरितम् दकिंकारव शब्द जिसने ऐसा कपाट युग्म दोनों कपाट जल्दी उघड़े ॥ ५४१॥
सहितम्. सो तत्थ रिसहनाई, बत्थालंकारघुसिणकयपूयं, अमिलाणकुसुमदाम, वंदिय ढोएइ फलमउलं ॥५४२॥ ॥ ६९॥
3 अर्थ-वह श्रीपालकुमार उसजिनमंदिर में श्रीऋषभदेवस्वामी देवाधिदेवको नमस्कार करके सर्वोत्कृष्ट फल चढावे कैसे
श्रीऋषभदेवस्वामी उत्तमवस्त्र और अलंकार आभूषण करके और केसरकरके करी है पूजा जिन्होकी और विकस्वर मान फूलोंकी माला कंठमें है जिन्होंके ऐसे ॥ ५४२ ॥ इत्थंतरंमि राया, धूयासहिओ समागओ तत्थ, । अच्छरियकारिचरियं, पिच्छइ कुमरं नियनिहयं ५४३ - अर्थ-इस अवसरमें कनककेतुराजा पुत्रीसहित उस जिनमंदिरमें आयाभया आश्चर्यकारी चरित्र आचार जिसका है ऐसे कुमरको निश्चल दृष्टि से देखे ॥ ५४३ ॥ कुमरोऽवि हरिसवसओ, पंचंगपणामलीढमहिवीढो। सिरसंठियकरकमलो,रिसहजिणिंदं थुणइ एवं ५४४
अर्थ-कुमरभी हर्षके वशसे पंचांगप्रणामकरके पृथ्वीका स्पर्श किया है जिसने मस्तकमें अर्थात् ललाटदेशमें अंजलि करी है जिसने ऐसा कहाजाय प्रकारसे श्रीऋषभदेवस्वामी की स्तुति करे ॥ ५४४ ॥ सिरिसिद्धचक्कनवपय, महल्लपढमिल्लपयमय जिणिंद । असुरिंदसुरिंदच्चिय, पयपंकय नाह ! तुज्झनमो ४५/
AASARA
For Private and Personal Use Only