________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सिरिसिद्धसेलमंडन, दुहखंडण खयररायनयपाय ।
सयलमहसिद्धिदायग, जिणनायग होउ तुज्झ नमो ॥ ५२॥ अर्थ-हे श्रीसिद्धशैल शत्रुजयगिरिका मंडन और विद्याधर राजाने नमस्कार किया है चरणों में जिसके और मेरेको टू सर्व सिद्धीके देनेवाले ऐसे हे जिननायक आपको नमस्कार होवो ॥ ५५२॥ तुज्झ नमो तुज्झ नमो, तुज्झ नमो देव तुज्झ चेव नमो, पणयसुररयणसेहर, रुइरंजियपाय तुज्झ नमो __अर्थ-आपको नमस्कार हो आपके लिए नमस्कार हो आपके अर्थ नमस्कार हो हे देव आपहीको नमस्कार होवो टू और अतिशय नमस्कार किया देवोंने उन्होके रत्नोंके शेखरोकी दीप्ति करके रंजित है चरणकमल जिन्होंका ऐसे हेदेव टू आपको नमस्कार होवो ॥ ५५३ ॥
इति स्तवनं, रायावि सुयासहिओ, निसुणंतो कुमरविहिय ।
संथवणं, आणंदपुलइअंगो, जाओ अमिएण सित्तुव ॥ ५५४ ॥ | अर्थ-यह स्तुति करी तब पुत्रीसहित राजाभी कुमरकी करी भई स्तुति सुनता हुआ आनंदसे रोमोद्गम युक्त अंग दिजिसका ऐसा भया अमृतसे सींचा हुआ होय वैसा ॥ ५५४॥
KUSAGGASSASSASAUCAM
For Private and Personal Use Only