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श्रीपाल-II अर्थ-इधरसै कोई पुरुष देवसदृशरूपआकृति वेष मनोहर जिसका ऐसा, नेत्र और मुख अतिशयप्रसन्नहर्षित जिसका|भाषाटीकाचरितम् 13 प्रधान घोड़ेपर सवार हुआ ऐसा ॥ ४८१॥
18| सहितम्बहुपरिअरपरिअरिओ, पत्तो कुमरस्स गुड्डरदुवारं। पिक्खेइ नाडयं जा, तो सो कुमरेण आइओ॥४८॥ ___ अर्थ-और बहुत परिवारसे परवरा हुआ ऐसा कुमरके तंबूका दरवाजा वहां प्राप्त हुआ जितने नाटक देखे उतने कुमरने उसपुरुषको अपने पासमें बुलवाया ॥ ४८२॥ युग्मं सो कयकुमरपणामो, आसणदाणेण लद्धसम्माणो। विणयपरो वीसत्थो, उवविट्ठो कुमरपायंमि॥ ___ अर्थ-वह पुरुष किया है नमस्कार जिसने ऐसा तथा आसन देनेसे पाया है सन्मान जिसने और विनयमें ततपर | विश्वास युक्त स्वस्थ चित्त जिसका ऐसा कुमरके पासमें बैठा ॥ ४८३ ॥ * सुरपिच्छणयसरिच्छं, तं पिच्छणयं पलोइऊण खणं। चिंतइ एस इमाए, लीलाए कोवि रायसुओ ४८४
___ अर्थ-देवताके नाटक सदृश वह नाटक क्षणमात्र देखके विचार करे इस लीलाकरके यह कोई राजकुमर है ऐसा| 15/जाना जावे है ।। ४८४ ॥
13॥६२॥ ६ थक्कंमि नाडए सो, पुट्ठो कुमरेण कोसि भद्द तुमं । कत्थ पुरे तुह वासो, दिटुं अच्छेरयं किंपि ॥४८५॥
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SAARESSANO
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