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अर्थ - तीसरी रात्रिके चौथे प्रहरमें ध्वनि निकली अर्थात् उस रंगमंडपमें अकस्मात् ऐसी आकाशवाणी भई ॥ ५९८ ॥ दोस न कोइ कुमारियह, नरवर दोस न कोइ । जिणकारणि जिणहरु जडिओ, तं निसुणउ सहु कोइ ॥ अर्थ - वह वाणी दोहा छन्दोसे कहते हैं यहां कुमरीका दोष कोई नहीं है और राजाकाभी दोष नहीं है जिस कारणसे जिनमंदिर ढका गया है वह कारण सबलोग सुनो ॥ ५१९ ॥
तं सोऊणं वाला, संजाया हरिसजणियरोमंचा। रायावि हु साणंदो, संजाओ तेण वयणेण ॥ ५२० ॥ अर्थ - तदनंतर देववाणी सुनके राजकन्या हर्षित भई रोमराजी जिसकी विकस्वरमान भई राजाभी उसवाणी से आनंद सहितभए ॥ ५२० ॥
लोयावि सप्पमोया, जाया सवेवि चिंतयंति अहो । किं कारणं कहिस्सइ ! तत्तो वाणी पुणो जाया ५२१
अर्थ - लोकभी हर्षसहित हुआ ऐसा सब विचारे अहो यह आश्चर्य है क्या कारण कहेगा बाद और वाणी भई ॥ जसु नरदिट्ठिहिं होइसइ, जिणहरु मुक्कदुवारु । सोइज मयणमंजूसियह, होइसइ भत्तारु ॥ ५२२ ॥ अर्थ - जिस मनुष्यके देखनेसे जिनमंदिरका दरवाजा उघड़ेगा अर्थात् खुलेगा वहही नररल मदनमंजूषा राजपुत्री का भर्तार होगा ।। ५२२ ॥ श्रीपा.च. १२ गाढयरं तो तुट्ठा, सबे चिंतंति कस्सिमा वाणी । एवं च कया होही, तत्तो जाया पुणो वाणी ॥ ५२३ ॥
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