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| तम्मज्झे रिसहेसर, पडिमा कणयमणिनिम्मिया अत्थि । तिहुयणजणमणजणिया, -णंदा नवचंदलेहव ॥ अर्थ — उस मंदिरमें सोने और मणिरत्नसेंवनीभई श्री ऋषभदेवस्वामिकी प्रतिमा है कैसी है प्रतिमा नवीन चन्द्रमाकी | रेखाके जैसी तीनभवनके लोकोंके मनमें उत्पन्न किया है आनन्द हर्ष जिसने ऐसी ॥ ४९३ ॥
तं सो खेयरराया, निश्चं अच्चेइ भत्तिसंयुत्तो । लोओवि सप्पमोओ, नमेइ पूएइ झापइ ॥ ४९४ ॥
अर्थ- वह विद्याधरोंका राजा भक्तिसहित उस जिन प्रतिमाकी नित्यपूजा करे है नगर में रहनेवाले लोग भी हर्षसहितहोके उस प्रतिमाको नमस्कार करे है पूजाकरे है ध्यावे है ॥ ४९४ ॥
|सा नरवरस्स धूया, विसेसओ तत्थ भत्तिसंजुत्ता । अट्ठपयारं पूयं, करेइ निश्चं तिसंज्झासु ॥ ४९५ ॥
अर्थ — वह पहले कही मदनमंजूषानामकी राजकुमरी विशेष भक्ति संयुक्त उस जिनमंदिरमें तीनों संध्यामें निरंतर अष्टप्रकारी पूजाकरे है ॥ ४९५ ॥ अन्नदिणे विहिनिउणा, सा नरवरनंदिणी सपरिवारा। कयविहिवित्थरपूया, भावजुया वंद देवे ॥९६॥ अर्थ - अन्यदिनमें विधिमें निपुण चतुर वह राजकुमरी परिवारसहित विस्तारविधिसे करी पूजा जिसने ऐसी और शुभभावयुक्त देवनंदना करे ॥ ४९६ ॥
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