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अर्थ - सिल्लनामका जहाज ५४ है आवर्तनामका जहाज ५० हैं और क्षुरप्र नामका जहाज ३५ हैं इस प्रकारसे ५०० जहाज तय्यार किए हैं ॥ ३८३ ॥
श्रीपाल - चरितम्
॥ ५० ॥ ॐ गहिऊण निवाएसं, भरिया विविहेहिं ते कयाणेहिं । नाखुइयमालिमेहिं, अहिट्टिया वाणिउत्तेहिं ॥ ३८४ ॥
अर्थ - राजाकी आज्ञालेके वह जहाज नानाप्रकारके किरियानोंसे भरे हैं और नाखुयिक ( नाखवा ) और मालिम | जहाजके अधिकारीओं करके तथा वणिक पुत्रों करके अधिष्ठित नाम आश्रित हैं ॥ ३८४ ॥
| मरजीवएहिं गब्भिल्लएहिं, खुल्लासएहिं खेलेहिं । सुंकणिएहिं सययं, कयजालवणीविहिविसेसा ॥ ३८५॥ अर्थ- समुद्र के जलमें प्रवेशकरके वस्तु निकाले वह मरजीवक कहे जावें और गब्भिल्लकनाम खलासीलोग और खेल और सुंकाणिक अपने २ जहाज सम्बन्धी व्यापारके अधिकारियो करके निरंतर किया है साचवण विधि विशेष जिन्होंमें ऐसे ॥ ३८५ ॥
नाणाविहसत्थविहत्थहत्थ, - सुहडाणद्ससहस्सेहिं । धवलस्स सेवगेहिं रक्खिजंता पयत्तेणं ॥ ३८६॥
अर्थ - और वह जहाज कैसे हैं अनेक प्रकारके शस्त्रों करके व्याकुलहैं हाथ जिन्होंके ऐसे दसहजार सुभट धवल | सेठके सेवकों करके प्रयत्नसे रक्षा करी गईहै जिन्होंकी ॥ ३८६ ॥ बहुचमरछत्तसिक्करि, धयवडवरमउडविहियसिंगारा। सढदोर सारनंगर, पक्खरभेरीहिं कय सोहा ॥ ३८७ ॥
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भाषाटीकासहितम्.
॥ ५० ॥