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अर्थ-इस प्रकारके समुद्रके कौतूहलनाम कौतुक देखता हुआ जितने कुमरश्रेष्ठ श्रीपाल चले है उतने ऊपर पीज-1 रेमें रहा हुआ पुरुष वक्षमाण प्रकारसे बोला ॥ ४२९॥ भो भो जइ जलइंधण-पमुहहिं किंपि अस्थि तुह्माणं। कजं ता कहह फुट, बबरकूलं समणुपत्तं ॥४३०॥ | अर्थ-अहो लोगो जो तुम्हारे जल इन्धन प्रमुखसे कुछभी कार्य होवे तो प्रगट कहो जिस कारणसे वबर कूल 12
नामका बंदर आया है रत्नद्वीप हालमें दूर है ॥ ४३०॥ है संजत्तिएहिं भणियं, ववरकूलस्स मंदिराभिमुहं। वच्चह जेण जलाई, गिन्हामो मा विलंवेह ॥ ४३१॥ ___ अर्थ-ऐसा वचन सुनके सांयात्रिक जहाजके वाणियोंने कहा ववरकूलबंदर के सामने चलो जिससे जलादिक लेवें इसमें देरी करना नहीं ॥ ४३१॥ पत्ताय तत्थ लोया, सपमोया उत्तरंति भूमीए । दससहसभडसमेओ, धवलोवि ठिओ तडमहीए ४३२ __ अर्थ-उस बंदरमें जहाज पहुंचे लोक हर्षसहित जहाजोंसे उतरे पृथ्वीपर तब दसहजार सुभटों करके सहित धवल | सेठ समुद्रके तटकी भूमिपर रहा ॥ ४३२ ॥ इत्थंतरंमि तेर्सि, हलवोलं सुणिय आगया तत्थ । बव्वररायनिउत्ता, मंदिरलागत्थिणो पुरिसा ।
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