________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobelirtth.org
Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir
अर्थ-निश्चय मेरा किया हुआ कार्य होता है ऐसा कोई गर्व मत धारो जिसकारणसे इन्द्रादिकका भी कार्य कर्मके वससे विपरीत होता है ॥ ३२९ ॥ |ता ताय जिणुत्तं तत्त, मुत्तमं मुणसु जेण नाएणं । नजइ कम्मजियाणं, बलाबलं बंधमुक्खं च ॥३०॥ | अर्थ-तिस कारण से हे पिताजी तीर्थकरका कहा हुआ तत्व उत्तम जानो जिसके जाननेसे कर्म और जीवों का बलाबल जाना जावे है कत्थवि जीवो वलीओ कत्थवि कम्माई हुंति वलियाई कभी जीव बलवान होता है कभी कर्म बलवान होते हैं जीव अनंत बली है और कर्म महाबली है और बंध मोक्ष जाना जाता है ॥ ३३० ॥ तत्तो धम्म पडिवजिऊण, राया भणेइ संतुट्टो । सीहरहरायतणओ, जं जामाया मए लद्धो ॥३३१॥
अर्थ-तदनंतर राजा धर्म अंगीकार करके संतुष्टमान होके बोले जो मैंने सिंहरथराजाका पुत्र जमाई पाया ॥३३॥ तं पत्थरमित्तकए, हत्थंमि पसारियंमि सहसत्ति । चडिओ अचिंतिओ च्चिय, नणं चिंतामणी एसो॥३२॥ ___ अर्थ-वह पाषाण मात्र ग्रहणनिमित्त हाथप्रसारण करनेसे अकस्मात निश्चय विना विचाराही यह चिंतामणि रत्न हाथमें आया ॥ ३३२॥ जामाइयं च धूयं, आरोविय गयवरंमि नरनाहो। महया महेण गिहमाणिऊण, सम्माणइ धणेहिं ॥३३॥
SUNU
ACANCARNAGARCANGA
For Private and Personal Use Only