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व
भाषाटीकासहितम्.
श्रीपाल
अर्थ-बाद उस कमलप्रभाने गहना बेचके उस द्रव्यसे अपने पुत्रको यौवन अवस्था प्राप्त किया उतने पूर्वकृत कर्म चरितम्
18|दोषके वशसे उस बालकके उंवर कोढ़ विशेष रोग भया ॥ ३०९॥ ॥४१॥
वहएहिपि कएहिं, उवयारेहिं गुणो न से जाओ। कमलप्पहा अदन्ना, जणं जणं पुच्छए ताव ॥३१०॥ है। अर्थ-बहुत उपाय करनेसेभी वह रोग नहीं मिटा तब कमलप्रभा रानी अधीर भई हरएक मनुष्यसे रोग जानेका Pउपाय पूछे ॥ ३१॥
केणवि कहियं तीसे, कोसंबीए समत्थि वरविजो। जो अट्ठारसजाई, कुटुस्स हरेइ निष्भंतं ॥३११॥ - अर्थ-उतने किसी पुरुषने कमलप्रभासे कहा कौशाम्बी नगरीमें अठारह जातिका कुष्ट रोग मिटानेवाला प्रधान वैद्य है निसंदेह सब रोगोंको मिटाता है ॥ ३११॥ कमला पुत्तं पाडोसियाण, सम्मं भलाविऊण सयं । विजस्स आणणत्थं, पत्ता कोसंबिनयरीए ॥३१२॥
अर्थ-तब कमलप्रभा रानी अपने पुत्रको पाडोंसियोंको बोलाकर अर्थात् सौंपके आप वैद्यको बुलानेके वास्ते कौशाम्बी नगरी प्राप्त भई ॥३१२॥ तं विजं तित्थगयं, पडिक्खमाणी चिरं ठियातत्थ।मुणिवयणाओ मुणिऊण, पुत्तसुद्धिं इहं पत्ता ॥३३॥
॥४१॥
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