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श्रीपाल- अर्थ-उतने कुमरके पीछे रही भई कुमरकी माता और स्त्रीको देखके रूप्पसुंदरी रानी मममें विचारती भई क्या भाषाटीकाविचारा सो कहते हैं ॥ २६७ ॥
सहितम्. ही एसा का लहुया, वहुया दीसेइ मज्झ पुत्तिसमा। जावनिउणं निरिक्खइ, उवलक्खइ ताव तं मयणं ६८ द्र अर्थ-हि यह विचारमें है रानी विचारती है मेरी पुत्रीके सदृश यह छोटी बहू कौन दीखती है ऐसा विचारके है|जितने अच्छी तरहसे देखे उतने उसको मदनसुंदरी है ऐसा जाने ॥ २६८ ॥
नूणं मयणा एसा, लग्गा एयस्स कस्सवि नरस्स । पुट्ठीइ कुट्ठियं तं, मुत्तूणं चत्तसइमग्गा ॥ २६९ ॥ 8 अर्थ-तब उसके अनन्तर इस प्रकारसे विचारे निश्चय यह मदनसुंदरी मेरी पुत्री उस कुष्टी पुरुषको छोड़के सतीके 8 दमार्गका त्याग किया है जिसने ऐसी यह कोई पुरुषके पीछे लगी है ऐसा जाना जाय है ॥२६९ ॥
मयणा जिणमयनिउणा, संभाविजइन एरिसंतीए।भवनाडयंमि अहवा, ही ही किंकिंन संभवइ ॥७॥ ___ अर्थ-मदनसुंदरी जिनमतमें निपुण वर्ते है उससे ऐसा अकार्यका करना नहीं संभवे अथवा ही ही इति अतिदूखेदे भव नाटकमें जीवोंके क्या २ नहीं संभवे अपि तु सर्व संभवे है ॥ २७० ॥
|विहियं कुले कलंकं, आणीयं दूसणं च जिणधम्मे। जीए तीइ सुयाए, न मुयाए तारिसं दुक्खं ॥२७॥8॥३६॥ का अर्थ-जिसने कुलमें कलंक लगाया जिन धर्मपर दूषण प्राप्त किया वह पुत्री मरजाती तो वैसा दुःख नहीं होता ॥७१॥
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