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भाषाटीका. सहितम्.
श्रीपाल- श्री सिद्धचक्रके स्नात्र जलका इत्यादि प्रभाव सुनके और प्रत्यक्ष प्रभाव देखके महान हर्ष जिन्होंको ऐसे लोग चरितम् विशेष करके शांति जल ग्रहण करके अपने २ घरमें लेजाके छांटा विमारों शांति जल लगाया उससे अच्छे भए ॥२४३॥ ॥३३॥
तिं कुट्टिपेडयं पि हु, तज्जलसंसित्तगत्तमचिरेण । उवसंतप्पायरुअं, जायं धम्ममि सरुई च ॥ २४४॥ 81 अर्थ-वह कोढ़ी मनुष्योंका समुदायभी शांति जलको अपने शरीरमें लगाया तब थोड़े कालमें उपशांत प्राय रोग त भया और धर्ममें रुचि अभिलाषा बढ़ी अर्थात् धर्ममें रुचिवाले भए ॥ २४४॥ |मयणा पइणो निरुवमरूवं च निरूविऊण साणंदा। पभणेइ पई सामिय, एसो सबो गुरुपसाओ ॥४५॥ | अर्थ और मदनसुंदरी अपने पतिका निरुपम अतिअद्भुत रूप देखके आनंद सहित भई श्रीपालकुमरकों कहे हे| |स्वामिन् यह सर्व श्रीगुरु महाराजका प्रसाद है ॥ २४५ ॥ मायपियसुयसहोयर,-पमुहावि कुणंतितं न उवयारं । जं निकारणकरुणा,-परो गुरू कुणइ जीवाणं ॥४६॥ | अर्थ-माता, पिता, पुत्र, भाई प्रमुख ग्रहणसे औरभी स्वजनवगैरह यह सर्व वह उपकार नहीं करसके है वह उपकार जीवोंका निष्कारण करुणा प्रधान जिन्होंके ऐसे गुरू करे हैं ॥ २४६ ॥ तं जिणधम्मगुरूणं, माहप्पं मुणिय निरुवमं कुमरो।देवे गुरुमि धम्मे, जाओ एगंतभत्तिपरो ॥ २४७ ॥
CROCHAMAMALAMA
BORESEARCRACKAGA
॥३३॥
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