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। अर्थ-इस प्रकारका वह मुनीन्द्र धर्मका स्वरूप कहताथा तब अवसर पायके नमस्कार करके मैने प्रश्न किया हे भगवन् मैं प्रश्न करती हूं मेरा पुत्र कब निरोग होगा रोगरहित शरीर जिसका ऐसा ।। २५५ ॥ तेण मुर्णिदेणुत्तं, भद्दे सो तुझ नंदणो तत्थ । तेणं चिय कुट्टियपेडएण, दट्टण संगहिओ॥ २५६ ॥ | अर्थ-तब उस मुनिन्द्रने कहा हे भद्रे हे पुत्रि तेरे पुत्रको उजैनीमें उन कोढ़ी मनुष्योंने देखके ग्रहण किया अपने पासमें रक्खा है ॥ २५६ ॥ विहिओ उंबरराणुत्ति, नियपह लद्धलोयसम्माणो। संपइ मालवनरवइ,-धूयापाणप्पिओ जाओ ॥२५७॥ | अर्थ-बाद उन कोढ़ी पुरुषोंने तेरे पुत्रका उम्बर राणा ऐसा नाम करके अपना स्वामी किया है वह तेरा पुत्र लोकोंमें सत्कारपाया है इस वक्त मैं मालवदेशका राजा प्रजापालकी पुत्री मदनसुंदरीका प्राणप्रिय अर्थात् भर्तार भया है ॥ २५७ ॥ रायसुयावयणेणं, गुरूवइटुं स सिद्धवरचकं । आराहिऊण सम्म, संजाओ कणयसमकाओ ॥ २५८ ॥ ___ अर्थ-वह तेरा पुत्र राजपुत्री मदनसुंदरीके वचनसे श्री गुरूका कहा हुआ सिद्धचक्रयंत्रराजको विधिःसे आराधके | सोनेके सदृश शरीर जिसका ऐसा स्वर्णवर्ण देह भया है ॥ २५८ ॥ सोय साहम्मिएहिं, पूरियविहवो सुधम्मकम्मपरो।अच्छइ उज्जेणीए, घरणीइ समन्निओ सुहिओ २५९/
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