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श्री
अर्थ उक्त प्रकार
चरितम् ॥२१॥
के अरिदमन कुमर
लोगो। धन्ना एसा सुरसार कन्याका अनुरूप
एवं विहियविवाहो, अरिदमणोलद्धहयगयसणाहो । सुरसुंदरीसमेओ, जा निगच्छइ पुरवरीओ ॥५९॥[भाषाटीका___ अर्थ-उक्त प्रकारसे किया है विवाह जिसका और पाया है घोड़ा हाथी उन्हों करके सहित और सुरसुंदरी अपनी सहितम्स्त्री समेत हाथीपर सवार होके अरिदमन कुमर जितने उजैनीसे निकले अर्थात् रवाने होवे ॥ ५९॥ ता भणइ सयललोओ, अहोणुरूवो इमाणसंजोगो। धन्ना एसा सुरसुंदरी य, जीए वरो एसो ॥६॥ | अर्थ-उतने सर्व नगरके लोग याने बहुतसे लोग कहे अहो यह आश्चर्य है इन कुमार कन्याका अनुरूप योग्य सम्बन्ध भया है यह सुरसुंदरी कन्या धन्य है जिसका यह अरिदमन कुमर भर्तार हुआ ॥ ६॥ केवि पसंसंति निवं, केविवरं केवि सुंदरिंकन्नं । केवि तिए उवज्झायं, केवि पसंसंति सिवधम्मं ॥६॥ | अर्थ-और उस अवसरमें कईक लोग राजाकी प्रशंसा करे कितनेक लोग कुमरकी प्रशंसा करे कईक लोग सुरसुं-18 दरी कन्याकी शोभा करे कितनेक लोग कन्याकी माताकी और उपाध्यायकी प्रशंसा करे कईक लोग शिवधर्मकी प्रशंसा करे ॥६१॥
सुरसुंदरि सम्माणं, मयणाइ विडंबणं जणोदटुं। सिवसासणप्पसंसं, जिणसासणनिंदणं कुणइ ॥२॥ है। अर्थ-उस अवसरमें सुरसुंदरी राजकन्याका सन्मान सत्कार देखके और मदनसुंदरीकी विडंबना देखके बहिदृष्टि | ॥२१॥
लोग जैसे होय वैसा शिवशासनकी प्रशंसा और जैनशासनकी निंदा करे ॥२॥
NISHALISAMACROSA
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