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| किया है कलसाकार अमृत मंडलके जैसा स्मरण करो अर्थात् कलसाकार लिखे पूर्वादि चारदिशामें जया १ विजया १२ जयंती ३ अपराजिता ४ और अग्निआदि चार विदिशामें जंभा १ थंभा २ मोहा ३ गंधा ४ इन्होंनें करी है सेवा जिसकी ॥ २०३ ॥
| सिरिविमलसामिपमुहा, -हिट्ठायगसयल देवदेवीणं । सुहगुरु मुहाओ जाणिय, ताण पयाणं कुणह झाणं ४ अर्थ - श्री विमलस्वामी सौधर्म देव लोकमें रहनेवाला श्री सिद्धचक्रका अधिष्ठायक प्रमुख समस्त देव और चक्रे - श्वरी वगैरेह देवियां उन्होंका ध्यान गुरूके मुखसे जानके मंत्रपदोंका ध्यान करो इन्होंका नाम कलसाकार यन्त्रके ऊपर चौतर्फ लिखे ओम् ह्रीँ विमलस्वामिने नमः इत्यादि ॥ २०४ ॥
अर्थ
| तं विज्जादेविसासण, सुरसासणदेविसेवियदुपासं । मूलगहं कंठणिहिं, चउपडिहारं च चउवीरं ॥ २०५ ॥ दो गाथा व्याख्यान कहते हैं वह श्री सिद्धचक्रयन्त्रराज पूजनेवाले मनुष्योंका मनोवांछित पूरता है कैसा है रोहिण्यादि विद्या देवी सोलह और गौमुखयक्षादि २४ शासन देव चक्रेश्वर्यादि २४ शासन देवी इन्होंसे सेवित है वाम दक्षिण पार्श्व भाग जिसका और कैसा है श्री सिद्धचक्र कलसके मूलमें सूर्यादि नव ग्रह है जिसके और कंठमें नैसपदि नव निधान है जिसके नैसर्प १ पांडुक २ पिंगल ३ सर्वरत्नक ४ महापद्म ५ काल ६ महाकाल ७ | माणव ८ शंखक ९ तथा ४ प्रतिहार कुमुद १ अंजन २ वामन ३ पुष्पदंत ४ है जिसके तथा ४ वीर मानभद्र १ पूर्ण
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