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अर्थ- वहां रहा हुआ श्रीपाल कुमर मदनसुंदरीके बचनसे तथा गुरूके उपदेशसे श्री सिद्धचक्रका प्रसिद्ध पूजा विधिका सम्यकू अभ्यास करे ।। २३१ ॥
| अह अन्न दिणे आसोय, सेयअट्ठमितिहीइ सुमुहुत्ते । मयणासहिओ कुमरो, आरंभइ सिद्धचक्कतवं २३२ |
अर्थ — उसके अनंतर अन्य दिन आश्विन सुदि ८ अष्टमी के दिन शुभ मुहूर्तमें मदनसुंदरी सहित श्रीपाल कुमर श्री सिद्धचक्रका तप प्रारंभ करे ।। २३२ ।।
| पढमं तणुमणसुद्धीं, काऊण जिणालए जिणच्चं च । सिरिसिद्धचक्कपूयं, अट्ठपयारं कुणइ विहिणा ॥२३३॥
अर्थ - पहले शरीर और अन्तःकरणकी शुद्धि करके और जिनमंदिरमें श्री तीर्थंकर की पूजा करके श्री सिद्ध चक्रकी अष्ट प्रकारी पूजा करे ॥ २३३ ॥
एवं कयविहिपूओ, पच्चक्खाणं करेइ आयामं । आणंदपुलइअंगो, जाओ सो पढमदिवसे वि ॥ २३४ ॥
अर्थ - इस प्रकार से करी है विधिसे पूजा जिसने ऐसा श्रीपाल कुमर आंबिलका पच्चक्खान करे पहले दिवसमें भी आनंदसे रोमोद्गम युक्त अंग जिसका ऐसा भया ॥ २३४ ॥
वीर्यादिणे सविसेसं, संजाओ तस्स रोगउवसामो । एवं दिवसे दिवसे, रोगखए वड्ढए भावो ॥ २३५ ॥
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